रद्दी कागज़

कल रात एक साफ़ सफाई अभियान चलाया, कॉलेज प्रवेश के वक़्त जमा कराए गए कुछ दस्तावेज़ों की प्रतियां मिली| देखते ही देखते चेहरे पे एक अजीब मुस्कुराहट थी, शायद इस वजह से की इन कागज़ों के बारे में बचपन में कुछ सोच थी, उस सोच को आज असल जीवन में सच होते देख रहा था|

एक कागज़ पर अंग्रेजी में लिखा था ‘कैरक्टर सर्टिफिकेट’ , बड़ा ही हास्यास्पद कागज़ है, विद्यालय की प्रधानाचार्या महोदया ने मेरे अच्छे चरित्र की जिम्मेदारी ली है| इस कागज़ को देख कर यह एहसास होता है की भरोसा करना कितना आसान है , मेरी प्रधानाचार्या न मुझे पहचानती है न कोई व्यक्तिगत मुलाकात हुई है , बस पीढ़ियों से चलती आ रही एक परंपरा के नाम पर उन्होंने मुझे यह कागज़ थमा दिया| आज अगर मैं उनसे ऐसा ही एक और कागज़ मांगने जाऊँ तो शायद मुझे कुछ हासिल ना हो| पूर्व प्रधानाचार्या को छोडिए आज अगर मैं अपने दोस्तों से भी ऐसा कोई कागज़ मांगू तो उन्हें हिचिकचाहट होगी| खैर यह हसी-मज़ाक की बात है , यारी दोस्ती में चलते रहना चाहिए|

एक और अत्यधिक विचित्र कागज़ मिला जिसे मूल निवास प्रमाण पत्र कहते है , यह कागज़ इस बात का प्रमाण है की मैं राजस्थान प्रदेश का मूल निवासी हूँ , भारतीय होना कई बार पर्याप्त नहीं होता , डेमोक्रेसी भी एक नायाब चीज़ है , इसके रंग निराले| इसी कागज़ के सलग्न है एक कागज़ जिसपे एक बड़े अधिकारी ने सत्यापित किया है की मेरे पिताजी भी यहीं के निवासी हैं और राजस्थान सरकार को अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं| सत्यापन भी एक बड़ी ही खोखली क्रिया है , किसी तीसरे व्यक्ति का मेरे लिए जिम्मेदारी लेना बहुत महत्वपूर्ण है , सारा मूल्य सत्यापित करने वाले की मोहर में है| मोहर है तो सच है, मोहर नहीं तो सच नहीं| यह सत्यापन का ही तो खेल है की हज़ारों लाखों घोटाले होते होते बच गए , यह तीसरे व्यक्ति का जिम्मेदारी लेना ही तो है जो आपराधिक दिमाग को सच्चाई का मार्ग दिखता है| फिर भी न जाने क्यों आजकल सत्यापन को धीरे धीरे सिस्टम से हटाया जा रहा है , व्यक्ति स्वयं अपनी जिम्मेदारी ले सकता है|

फिर कुछ कागज़ हैं जिन्हें हम मार्कशीट कहते हैं| यह कागज़ मेरी योग्यता बताते हैं , जी हाँ एक छोटा कागज़ का टुकड़ा मेरी योग्यता बताता है , प्रतियोगिता के इस ज़माने में मेरी औकात बताता है| यूँ तो कई मामलों में भ्रामक बातें करना अपराध है , जब यह अपराध संगठित तौर पर किया जाये तो इसे शिक्षा प्रणाली कहते हैं| बताइए मुझे की कागज़ पे लिखे गए कुछ अंक एक व्यक्ति के बारे में पैदा किया भ्रम नहीं है तो और क्या है| बेहतर शिक्षा एक ऐसा जुमला है जिसे हम सदियों से चलाते आ रहे है| बेहतर शिक्षा के अवसर उसे प्राप्त होते हैं जो समाज के पैमानों पर पहले से होशियार है , उसे नहीं जो कमजोर है , नामचीन शिक्षण संसथान उन्हें शिक्षा देते हैं जो कमज़ोरों को हरा कर आगे आये हैं , उन्हें नहीं जो पीछे छूट गए| क्या यह वाकई बेहतर संसथान हैं? समाज ने तो यही बताया है, होते ही होंगे , मान लेते हैं| इसमें उन संस्थानों का कोई दोष नहीं , हम बराबरी की बात करते हैं , पर असल में बराबरी से भरा समाज हम बनना ही नहीं चाहते , बुराई भी क्या है , अगर काम प्रतिभाशाली लोगों को आगे लाने का बोझ समाज उठा लेगा तो हम आगे बढ़ेंगे कैसे|

बचपन में ही यह बात समझ आ गयी थी की इन कागज़ों का कोई मोल नहीं है, ना तो यह मेरे जीवन को दिशा देंगे ना ही मेरे व्यक्तित्व के बारे में कुछ बता पाएंगे| सब कुछ समझने के बावजूद भी एक सपना आज भी अधूरा है| स्कूल से विदा लेते वक़्त यह सोचा था की इन कागज़ों को एक दिन अग्नि के हवाले कर दूंगा , पहचान बताने वाले उन अंकों को खाक कर दूंगा , पर हमारे बनाए इस लाइसेंस राज ने दसवीं और बारहवीं की उन अंकतालिकाओं को बेतुका महत्व दे रखा है , जलाने से सिर्फ सरकारी दफ्तरों के फ़िज़ूल चक्कर बढ़ेंगे|

इस दौड़ भाग में एक छोटा बैग भर गया है जिसमें ऐसे कागज़ों का भंडार है , जिन्हे सर्टिफिकेट कहते है| वैसे तो बैग चीख चीख कर स्वाहा होने की बात कह रहा है , पर उनमें से कुछ टुकड़ों के साथ कुछ यादें कैद हैं| मैं बता दूँ की उन यादों का कठोर परिश्रम , या प्रतिस्पर्धा से कोई लेना देना नहीं है , बस दिमाग ने कुछ वाकियों को उन कागज़ों से जोड़ रखा है|

उम्मीद करता हूँ की एक दिन उस बैग के अग्नि में विलीन होने की तस्वीर इस वेबसाइट पे ज़रूर होगी , तब तक यह रद्दी कागज़ों का पुलिंदा एक अलमारी के किसी कोने में तन्हा पड़ा है|

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