मानव का मशीनीकरण, मशीन का मानवीकरण

बड़ा ही विचित्र ज़माना है एक ओर लोग मशीन में अकल की बात कर रहे हैं, वहीँ दूसरी ओर खुद को सरलीकरण के नाम पर विविधता खोने पे मझबूर कर रहे हैं | सीधे शब्दों में कहा जाए तो विचारों का मशीनीकरण कर रहे हैं , बस यह विचार और विचार कर पाने की शमता ही मानव को पृथ्वी की सभी प्रजातियों में सर्वोच्च बनाती है | व्यवहार नमक शब्द विलुप्त होने की ओर अग्रसर है, यह सच है की सोशल मीडिया जैसे तकनिकी आधुनिकरण से अपने विचार व्यक्त करने की आजादी बढ़ रही है वहीँ संस्थानों में मत रखने के अधिकार ख़तम किये जा रहे हैं | विविधता की कमर तोड़ कर फॉर्म और प्रक्रियाओं में पिरोया जा रहा है |

कला के आयाम बढ़ रहे हैं पर कला सिमटती जा रही है | दुनिया इंग्लिश सीख रही है और भाषायों की विलुप्ति पर मगरमच्छ के आंसूं भी बहा रही है | अपने आप को जैसे ढालना है ढालिए लिए पर दूसरे को अपनी इच्छा अनुसार ढलने की वैचारिक तथा व्यवहारिक स्वतंत्रता तो दीजिये | पूर्ण आजादी भी बुरी है, आजादी के साथ आने वाली ज़िम्मेदारी का एहसास होना अनिवार्य है, पर इस भावना को समझपाने भर की अकल भी यंत्रीकरण की आग में स्वाहा हो गयी । आजादी का जुमला जैसे कंप्यूटर में डाल दिया गया हो बस यह शब्द सुनते ही कार्यवाही करना चालू, मोमबत्तियां लेकर चौराहे पे रवाना, बिना सोचे बिना जाने |

वक़्त की मांग है बहुमुखी व्यक्तित्व संवारना, इस बारे में बात भी की जा रही है, लिखा भी जा रहा, पर शिक्षण संस्थानों के पाठ्यक्रम में नज़र नहीं आ रहा है । यह भी हो सकता है की बहुमुखी विकास अर्थ अंग्रेजी बोल पाना और कंप्यूटर पे दक्षता हासिल करना ही हो, क्यूंकि जो हो रहा है उससे सिर्फ सरपट अंग्रेजी बोलने वाले , कंप्यूटर पे धडाधड बटन दबाने वाले और 9-5 एक ही काम बार-बार करने वाले औज़ार पैदा हो रहे हैं | 2005 के बाद आये गतिवाद में कब तक 90-95 का कम्प्यूटरीकरण करेंगे और विडम्बना यह है की कंप्यूटर आगे बढ़ लोग वहीँ रह गए | ग्यानी महात्मा कह गए होंगे की स्वयं को वक़्त के अनुसार बदलो, पर महान लोग सिद्ध कर गए की वक़्त उनके अनुसार चलता है | किसी ज़माने में ऊँगली पकड़ कर चलना सिखाया जाता था और फिर बेपरवाह बचपन व्यतीत करने दिया जाता आज हालात ऐसे हैं की कॉलेज जाने वालों की भी ऊँगली पकड़ रखी है समाज ने |

आत्मिक स्वतंत्रता बरक़रार है इसलिए मैं ऊँगली पकड़ने से इनकार करता हूँ, आपको जो करना है कीजिये आपकी आजादी को ठेस पहुँचाना मेरे सिद्धांतों में नहीं | यह लेख जानबूझकर हिंदी में लिखा गया है , मैं अंग्रेजी के खिलाफ नहीं, मैं अंग्रेजी थोपे जाने के खिलाफ हूँ |

Leave a Reply

Your email address will not be published.