लहलहाती ज़मीन से जब सोंधी महक आती है
यह जवानी देश पे मर मिट जाने को कह जाती है
शूरवीर तोह देश पे सर्वस्व्य लुटाते है
योधा हम भी हैं घर बैठे शब्दों के तीर चलाते है
खून खौल उठता है आतंक के उन निशानों पर
लेकिन रक्त की कीमत हमने तोह मौम से तोली है
जब अत्याचार के आगे आदमी शांत बैठ जाता है
आदमी वह आदमी नहीं कहलाता है
लोग तोह वो जो नए आयामों को छुते है
आसमानों को चीरते भारत की विजयी गाथा गाते है
और हम संकीर्णता में क़ैद आज़ादी का जश्न मनाते है
प्रतापी पुरुष वह निर्भयता समाये जिसमे है
वसुधा भी वीरों के बलिदान पर रोती है
कहने में तोह क्या आज़ादी की भी कोई कीमत होती है
ऐ माँ तेरी यह दशा देख दिल आज रोता है
ऐसी भी क्या लाचारी की हमसे कुछ भी नहीं होता है
आदर्शों को महापुरुषों ने साध लिया
फिर क्यों आज सिर्फ अराजकता ने दिल में राज किया
कहाँ गया स्वर्णिम भारत का वह हर्दय विशाल
खुद ही तोह हमने चहु ओर बुन लिया मायाजाल
सपूतों ने है माँ का नाम किया
कर्मठ ने भी क्या कभी आराम किया
आज के हिन्दुस्तानी को मेहनतकश बाजू शोभा नहीं देते
करमशीलता पर क्यों इतनी शंका है
राम राज्य में रावन का डंका है
जलाये से न जले ऐसी यह लंका है
मातृभूमि की पीड़ा अनेक है
पर उसके लिए लड़ने वाले सैनिक बस कुछ एक है
बार बार अच्छाई आज संहार किया
उस जननी को सिर्फ और सिर्फ शर्मसार किया
अरे अब तोह सुधरें, अब तो बदले
वक़्त आ गया है जागने का , बहुत कुछ त्यागने का
मैंने भी स्वर्णिम भारत का सपना फिर संजोया है
सुन्हेरे कल को अपने हाथो से पिरोया है